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बढ़ती आजीविका के लिए एकीकृत कृषि की सफल गाथा

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उपलब्‍ध भूखंड से उत्‍पादकता बढ़ाना एनएआईटी उप परियोजना ओडिशा के मयूरभंज कियोनझर और समबलपुर जिलों में एकीकृत मीठाजल मछली-पालन, बागवानी और पशुधन विकास के माध्‍यम से स्‍थायी आजीविका में सुधारके तहत निरंतर प्रयास किया जा रहा है। लगातार किए गए प्रयासों से अब वास्‍तविक तौर पर लाभ मिलने लगे हैं।

एनएआईपी परियोजना के अंतर्गत अंगीकृत कियोनझर जिले के आणंदपुर कलस्‍टर के बालादुआं गांव में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लोगों की बहूल है। कंसोर्टियम साझेदार, केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र, भुवनेश्‍वर द्वारा प्रोन्‍नत एक कार्यकलाप को आस-पास के क्षेत्रों और तालाब-नालों पर जलजीव-बागवानी प्रणाली से एकीकृत किया गया है। श्री पूरण चंद्रदास उन अधिकांश किसानों में से एक हैं, जो इस प्रौद्योगिकी पहल से लाभान्‍वित हुए हैं और उन्‍होंने अपने 2 तालाबों में एकीकृत जलजीवपालन-बागवानी कृषि प्रणाली अपनाकर प्राप्‍त अद्भूत सफलता से एक उदाहरण प्रस्‍तुत किया है। 10वीं कक्षा तक की औसत शैक्षिक योग्‍यता के साथ श्री दास अपने चार परिवार सदस्‍यों के साथ चावल की एकल फसल पर औपचारिक रूप से निर्भर रहते थे। केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र द्वारा आयोजित एक किसान बैठक के दौरान वार्तालाप से उन्‍हें अपने दो तालाबों के कम उपयोग किए गए किनारों के क्षेत्रफल में जलजीवपालन-बागवानी कृषि प्रणाली को अपनाने के लिए प्रोत्‍साहित किया गया। फल और सब्‍जी नर्सरी के लिए सृजित स्‍व:सहायता समूह के भाग के रूप में, उन्‍होंने एनएआईपी द्वारा उपलब्‍ध कराए गए बीजों से नर्सरी में रेड लेडी किस्‍म की पपीता पौधों को उगाया और 3 मीटर की पादप दर पादप दूरी के साथ अपने तालाब के निकटतम क्षेत्रफल में 25 पौधें रोपित कीं। एक वर्ष पश्‍चात उन्‍होंने औसतन रूप से प्रति पादप लगभग 1.0 से 1.2 क्विंटल पपीता फल उपज प्राप्‍त की। उन्‍होंने एक वर्ष में 2 बार पपीते की तुड़ाई की और 60 क्विंटल उपज प्राप्‍त की। उन्‍होंने स्‍थानीय हाट में तथा नजदीकी बाजारों में बरसात के मौसम में 8.5 रूपयों की दर से तथा ग्रीष्‍म में 6.5 रूपये प्रति कि.ग्रा. की दर से पपीते की बिक्री की। अपने घर के उपभोग के अलावा, उन्‍होंने अपने उपयोग नहीं किए गए तालाब के निकटतम क्षेत्रफल में पपीते की खेती कर कुल मिलाकर 38,000 रूपयों की आय प्राप्‍त की। उन्‍होंने पपीते में अंतर फसल के रूप में पोई, करेला, खीरे की खेती कर क्रमश: 8000, 5000 और 2,000 रूपयों की आय प्राप्‍त की। मछली-पालन के अलावा, बागवानी के जरिये आर्थिक लाभ के लिए तालाब के निकटतम क्षेत्रफल का बेहतर तरीके से उपयोग करना क्षेत्र के किसानों के लिए एक रोल मॉडल बन गया है। उनकी सफल एकीकृत कृषि के लिए उन्‍हें केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र, भुवनेश्‍वर में दिनांक 26 मार्च, 2013 को ‘’स्‍थायी आजीविका के लिए बागवानी पहल’’ पर कार्यशाला में सम्‍मानित किया गया।