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अचार बनाने के लिए कच्चे आम की कतलियों को लवण-जल में दीर्घकालीन परिरक्षण

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अचार में उपयोग के लिए लवण जल में कच्‍चे आम के टुकड़ों का दीर्घकालिक संरक्षण

अनुप्रयोग/उपयोग:

किण्‍वन के जरिए फलों और सब्जियों का संरक्षण और अचार बनाना काफी प्राचीन विधियां हैं जिन्‍हें पूरी दुनिया में अपनाया जाता है। भारत में अचार  वाणिज्यिक स्‍तर पर बनाया जाता है और यह हाल ही के वर्षों में एक प्रमुख खाद्य उद्योग के रूप में उभरकर आया है। जितने भी प्रकार के अचार बनाए जाते हैं, उनमें आम के अचार की घरेलू तथा अंतर्राष्‍ट्रीय दोनों बाजारों में काफी मांग होती है।

अपेक्षित निवेश :

आम की किस्‍मों के बीज  (i) कच्‍चा आम (ii) नमक (iii) भण्डारण-टैंक, ड्रम (iv) अनुज्ञेय योगज एवं परिरक्षक पदार्थ।

आउटपुट क्षमता :

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विशेष लाभ :

वाणिज्यिक अंगीकरण के लिए प्रक्रम की साध्‍यता को अचार उद्योग में सफलतापूर्वक परीक्षित किया गया है। इस प्रक्रम का अंगीकरण किए जाने से उच्‍च आर्थिक लाभ प्राप्‍त किए जाने की परिकल्‍पना की जाती है। यह प्रक्रम सूक्ष्‍म जीवाणु द्वारा किए जाने वाले नुकसान को काफी कम कर देता है, मशीन में तैयार उत्‍पाद में मुलायमपन तथा उसके रंग, सुवास और बनावट को अच्‍छी
तरह कायम रखने की सुनिश्चिता करता है। इस प्रक्रम के संभावित लाभ को आम के टुकड़ों के भंडारण के दौरान बर्बादी तथा एक समान गुणवत्‍ता के साथ अचार बनाने में बर्बादी को कम कर प्राप्‍त किया जा सकता है।

इकाई लागत :

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विवरण :

सामान्‍यतया, अचार कच्‍चे या अपरिपक्‍व आम के छिलकों के साथ या उनके बिना बनाया जाता है और उसमें अनेक प्रकार के फ्लेवर स्‍वाद और गुणवत्‍ता के लिए नमक तथा विभिन्‍न प्रकार के मसालों का इस्‍तेमाल किया जाता है। आम के उत्‍पादन के लिए अम्‍लीय और रेशायुक्‍त आम किस्‍में ज्‍यादा अच्‍छी होती है। अचार बनाने के लिए कच्‍चे आम फसल मौसम के 3-4 महीनों की छोटी अवधि के दौरान ही उपलब्‍ध होते हैं। इसलिए इन कच्‍चे आमों को पूरे वर्ष के दौरान अचार उत्‍पादन के लिए लंबी अवधि तक परिरक्षित किए जाने की आवश्‍यकता होती है। पारंपरिक रूप से आम के टुकड़ों में सूखा नमक मिलाकर भंडारित किया जाता है। इस विधि के अनुसार आम के टुकड़ों पर नमक की अनेक परते जम जाती हैं। इस विधि में अचार के रंग, टेक्‍चर और सूक्ष्‍म जीवाणु की हानि आमतौर पाई जाती है। इन समस्‍याओं से निजात पाने के लिए भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्‍थान, हेस्‍सरघाटा, बेंगलुरू में एक ब्रिनिंग प्रिजरवेशन विधि विकसित की गई है।   

विकासकर्ता :

श्री. ई. आर. सुरेश, प्रधान वैज्ञानिक (सूक्ष्‍म जीवविज्ञान), फसलोत्‍तर प्रौद्योगिकी प्रभाग, आईआईएचआर, हेस्‍सरघाटा, बेंगलुरू-89

संपर्क व्‍यक्ति :

निदेशक, भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्‍थान, हेसरघट्टा लेक पोस्ट, बेंगलुरू- 560 089, दूरभाष: 080-28466420-23; फैक्‍स: 080-28466291; ई-मेल: directoriihr@icar.gov.in (link sends e-mail)

संस्‍थान:

आईआईएचआर, बेंगलुरू