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अंगूर की उत्पादन तकनीक

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  • सूखा और लवणीयता स्थितियों के लिए सर्वश्रेष्‍ठ मूलवृंत के रूप में डॉगरिज की पहचान की गई।

  • तीन टर्मिनल शाखाओं में हाइड्रोजन सायनामाइड स्‍वैबिंग का उपयोग कर अक्‍तूबर माह के दौरान छंटाई के दौरान बड डॉर्मेन्‍सी से निपटा जा सकता है।

  • ‘Y’ आकार की ट्रेलिस प्रणाली के तहत शरद सीडलेस एवं फ्लेम सीडलेस किस्‍मों को उगाने के लिए कृषि विधियों का मानकीकरण किया गया।

  • 4 मि. मी. डेयरी अवस्‍था पर पुष्पण के बाद डुबोने के रूप में जीए (25 पीपीएम) और बीए (10 पीपीएम) का प्रयोग किए जाने तथा 8 मि. मी. डेयरी अवस्‍था पर जीए (25 पीपीएम) का प्रयोग किए जाने से डेयरी का आकार तथा बीज रहित अंगूर किस्‍मों की गुणवत्‍ता सुनिश्चित होती है।

  • फ्लेम सीडलेस और शरद सीडलेस में बेहतर गुणवत्‍ता वाले गुच्‍छों और फल गुणों के लिए केन को चौथी एवं पांचवी ग्रंथि तक सीमित किया जाना चाहिए और प्रति बेंत पर एक उप-बेंत विकसित करने की सिफारिश की गई है।

  • फल-कलिका विभेदन के लिए बैक प्रूनिंग के दौरान सीसीसी 1000-1500 पीपीएम का छिड़काव किया जाना चाहिए।