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रेशी मशरूम (गेयनोडर्मा लुसीडुम)

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इस मशरूम का रंग भूरा और इसमें चमकदार कैप होती है। इसके निचली सतह के छिद्र का रंग ब्रूजिंग पर क्रीम से सफेद हो जाता है। इसे रोगाणुहीन लकड़ी भूसी या धान भूसी में उगाया जा सकता है। इसके अंडजनन के लिए 30-32°से. के अनुकूल तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी अंडजनन की अवधि 25-30 दिन है। इसकी फसल उगाने के लिए अनुकूल तापमान 30-32°से., आर्द्रता 80-85%, प्रकाश और बेहतर वायु संचारण की आवश्यकता होती है। मशरूम की फसल-कटाई 2-3 फ्लश में की जाती है और उसके बाद इसी तरह पूरी फसल अवधि तक की जाती है। इसका फसल अवधि चक्र 120-150 दिन है। इसकी जैविक दक्षता क्षमता 25-30% है। चूंकि यह मशरूम लकड़ी के स्‍वरूप का है, इसलिए इसे सूखाकर कई महीनों तक भंडारित किया जा सकता है। इसका विपणन पाउडर रूप में किया जा सकता है। एक पादप रोगजनक होने की विशेषता के साथ रेशी मशरूम के भुक्तशेष अवस्तर के निपटान के दौरान काफी देखभाल की जरूरत होती है। अन्य पेड़ों पर इसके फैलाव को रोकने के लिए अवशेष अवस्तर को जला दिया जाना चाहिए। इसमें भरपूर मात्रा में औषधीय गुण होते हैं। चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में गेयनोडर्मा की प्रजातियों का उपयोग औषधि मशरूम के रूप में पारंपरिक तौर पर किया जाता है। गेयनोडर्मा न्यूट्रास्यूटिकल का उपयोग ऐसे रोगियों के उपचार के लिए किया जाता है जो हृदय रोग, ल्युकेमिया, ल्युकोपोइनिया, हेपाटाइटिस, नेफ्रिटिस, गैस, अनिद्रा, अस्‍थमा, ब्रॉनकाइटिस से ग्रस्त तथा कॉलेस्ट्राल कम करने के लिए किया जाता है। आधुनिक अनुसंधान में यह पाया गया है कि पॉलीसैकाराइड और ट्राइ-टेरपेनॉइड काफी सक्रिय पदार्थ हैं जो मानव के रोग निरोधक क्षमता तंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं। हाल ही में किए गए भेषज विज्ञान एवं प्रयोगशाला अध्‍ययनों में सह सुझाव दिया गया है कि इस मशरूम का उपयोग रक्‍त को पतला बनाने के लिए किया जा सकता है और इसमें एंटी-कैंसर/एंटी-टयूमर गुण भी है। यह हेपाटाइटिस-बी के विररुद्ध प्रभावकारी है और रक्‍त शर्करा एवं रक्‍त चाप को कम करता है।