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भारत का पहला त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी टमाटर एफ 1 संकर ‘’अर्का रक्षक’’ से आई किसानों के चेहरे पर रौनक

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उपलब्धियां
 भारत में पहला सार्वजनिक त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी टमाटर एफ 1 संकर ।
 उपज-क्षमता 18 कि.ग्रा. प्रति पादप।
 किसानों के खेतों में टमाटर के पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणुविक झुलसा एवं अगेती अंगमारी के प्रभाव को
झेलने में सफल।
 मौसम के आधार पर रू. 4-5 लाख प्रति एकड़ के दायरे में औसत शुद्ध आय प्राप्‍त की गई।
 पूर्ण उपज-क्षमता का दोहन करने हेतु सटीक कृषि विधियों का अंगीकरण।
टमाटर भारत में उगाई जाने वाली महत्‍वपूर्ण सब्‍जी फसलों में एक है। टमाटर की खेती करने वाले प्रमुख राज्‍यों में
आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, मध्‍य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, और महाराष्‍ट्र हैं। अनुकूल पर्यावरणीय स्थितियों
तथा उच्‍च उपज वाले संकरों का अंगीकरण किए जाने के कारण कर्नाटक में टमाटर की औसत उत्‍पादकता (35 टन
प्रति हैक्‍टे.) सबसे अधिक है। फिर भी, संकर किस्मों का कम अंगीकरण किए जाने तथा नाशीकीटों, रोगों और अन्‍य
जैविक कारकों के कारण भारत ने अभी भी टमाटर उपज की पूर्ण क्षमता (60-80 टन प्रति हैक्‍टे.) का दोहन नहीं
किया है। जैविक कारकों में, टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु (ToLCV), जीवाणुविक झुलसा (BW) और अगेती अंगमारी
रोग (EB) शामिल हैं, जो टमाटर की फसल को 70-100 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाते हैं, अगर इन कारकों को
नियंत्रित नहीं किया जाता तो।
कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले में चिकबल्लापुर तहसील के अंतर्गत देवास्‍थानदा होसाहल्‍ली गांव के किसान, श्री
चंद्रप्पा (संपर्क मोबाइल नं. 0944803878) के पास 20 एकड़ सिंचित भूमि है, जिसमें अधिकतर टमाटर, आलू,
शिमला मिर्च, गाजर और अंगूर जैसी बागवानी फसलें उगाई गई हैं। उन्‍होंने अपने खेतिहर जीवन में अभी तक
टमाटर की फसल को हमेशा उगाया है। तथापि टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी
जैसे रोगों के निरंतर प्रकोप के कारण उन्‍होंने वर्ष 2010 के पश्‍चात टमाटर की खेती करना हमेशा के लिए बंद कर
दिया क्‍योंकि निजी और सार्वजनिक संस्‍थाओं के टमाटर संकर बहुरोगों के विरूद्ध प्रतिरोधी नहीं हैं।
डॉ. ए.टी. सदाशिव, टमाटर प्रजनक, की अगुवाई में भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्‍थान, बेंगलुरू ने वर्ष 2010 के
दौरान भारत का पहला त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी टमाटर का संकर अर्का रक्षक विकसित किया, जो तीनों रोगों, या‍नी
टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु (ToLCV), जीवाणुविक झुलसा (BW) और अगेती अंगमारी रोग (EB) से प्रतिरोधी है।
इसकी आरंभिक उपज 75-80 टन प्रति हैक्‍टे. थी। इस संकर के फल गोल, बड़े (90-100 ग्राम), ठोसपन के साथ
गहरे लाल होते हैं, जो सुदूर बाजार तथा प्रसंस्‍करण के लिए उपयुक्‍त हैं।

        

अर्का रक्षक: टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु (ToLCV), जीवाणुविक झुलसा (BW) और अगेती अंगमारी (EB) रोग-

प्रतिरोध के साथ उच्‍च उपज वाला एफ 1 संकर

श्री चंद्रप्‍पा ने बड़ी हिचकिचाहट के साथ 2012 के दौरान व्यावसायिक एफ 1 संकर बादशाह के 1000 पादपों के
साथ अर्का रक्षक के 1000 पादपों को रोपित किया। वह इस एफ 1 संकर अर्का रक्षक के निष्‍पादन से काफी प्रभावित
हुए, क्‍योंकि इसमें जीवाणुविक झुलसा का प्रकोप काफी कम (<5%) था। व्यावसायिक एफ 1 संकरों की तुलना में इस
टमाटर के फलों से उन्‍हें उच्‍च मूल्‍य प्राप्‍त हुआ, क्‍योंकि अर्का रक्षक संकर के फलों का रंग गहरा लाल एवं आकर्षक
था और बेहतर टिकाऊपन-गुणवत्‍ता (15-20 दिन) के साथ फलों में पूर्ण ठोसपन था तथा यह किस्म दूर बाजार ले
जाने के लिए भी उपयुक्‍त थी। उन्‍होंने 7.3 कि. ग्रा. की प्रति पादप औसतन उपज प्राप्‍त की। ग्रीष्‍म में बोई गई
प्‍याज से उन्‍हें 1000 प्‍याज पादपों (0.25 एकड़ से) लगभग एक लाख रूपयों का शुद्ध लाभ प्राप्‍त हुआ। संस्‍थान
की निकरा परियोजना के तहत ग्रीष्‍म 2012 के दौरान एक कृषि दिवस सफलतापूर्वक आयोजित किया गया जिसमें
150 से अधिक किसानों ने भाग लिया।
अर्का रक्षक संकर की उपज और लाभ से अभिप्रेरित एवं आश्‍वस्‍त होकर श्री चंद्रप्‍पा ने फल आकार बढ़ाने तथा
उसके परिणामस्‍वरूप उपज बढ़ाने हेतु पादपों और पंक्तियों के बीच बढ़ते अंतराल के साथ दूसरी फसल के रूप में
अगस्‍त 2012 के दौरान एक आधे एकड भूखंड (2000 वर्ग मी.) में पुन: 2000 पौधों को उगाया। उन्‍होंने 38
टन/2000 वर्गमीटर (76 टन/एकड़) की अद्भुत उपज प्राप्‍त की, जो कि औसतन रूप से प्रतिपादप 19 कि. ग्रा. प्रति
पादप उपज है। आधे एकड़ भूखंड से उन्‍होंने 2.5 लाख रूपयों का शुद्ध लाभ प्राप्‍त किया। तत्‍पश्‍चात उन्‍होंने
ग्रीष्‍म 2013 के दौरान अर्का रक्षक की तीसरी फसल के दौरान अपने खेती के क्षेत्रफल को बढ़ाकर एक एकड़ किया
और उसमें से 60 टन प्रति एकड़ की फसल उपज प्राप्‍त की तथा 5 लाख रूपयों का शुद्ध लाभ प्राप्‍त किया। खरीफ
2013 के दौरान चौथी फसल से उन्‍हें और भी अधिक लाभ प्राप्‍त हुआ, जो 20 कि. ग्रा. प्रति पादप औसत उपज से
अधिक थी। 2500 पादपों से उन्‍होंने 2.5 लाख रूपयों का शुद्ध लाभ प्राप्‍त किया।
ग्रीष्‍म 2014 के दौरान उन्‍होंने एक एकड़ (3500 पादप) में अर्का रक्षक की 5वीं लगातार फसल उगायी और 16
अगस्‍त, 2014 तक उन्‍होंने 12 बार फसल-कटाई (प्रतिरोपण के 110 दिनों के बाद) से 31 टन प्रति एकड़ की उपज
प्राप्‍त की। यह किसान स्‍वस्‍थ एवं नाशीकीटों से मुक्‍त अपने खेतों से 30 टन प्रति एकड़ की फसल प्राप्‍त करने की
उम्‍मीद करता है। ग्रीष्‍म में प्‍याज की उच्‍च कीमत को ध्‍यान में रखते हुए उन्‍होंने बुद्धिमानी के साथ प्‍याज रोपण
की योजना बनाई और उन्‍होंने अब तक 9.75 लाख रूपयों की सकल आय प्राप्‍त की है।

डॉ. एस. अयप्‍पन, सचिव (डेयर), भारत सरकार और महानिदेशक, भाकृअनुप नई दिल्‍ली ने दिनांक 16.8. 2014
को देवास्‍थानादा होसाहल्‍ली गांव, चिकबालापुर जिला, कर्नाटक में श्री चंद्रप्‍पा के टमाटर खेत (अर्का रक्षक -
त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी एफ 1 संकर) का दौरा किया। डॉ. एन. के. कृष्‍ण कुमार, उप महानिदेशक (बागवानी विज्ञान),
भाकृअनुप, नई दिल्‍ली ने डॉ. टी. मंजुनाथ राव, निदेशक (कार्यवाहक), आईआईएचआर, बेंगलुरू के साथ श्री चंद्रप्‍पा
के टमाटर खेत का दौरा किया। श्री चंद्रप्‍पा ने महानिदेशक को यह बताया कि यह टमाटर पादप तीनों रोगों, अर्थात
जीवाणुविक झुलसा, टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु और अगेती अंगमारी से बहुत अच्‍छा प्रतिरोधी है। श्री चंद्रप्‍पा ने
यह भी बताया कि इसके फल ठोस, वजन में एक समान (90 ग्राम) तथा अंडाकार आकृति के होते हैं और फल पकने
की अवस्‍था पर उनका रंग आकर्षक गहरा लाल हो जाता है। श्री चंद्रप्‍पा ने यह भी बताया कि बेहतर ठोसपन और
लंबी अवधि(15-20 दिन) तक रख सकने के कारण इसके फल लंबी दूरी के परिवहन के लिए उपयुक्‍त हैं तथा बाजार
में बहुत पसंद किए जाते हैं।
उप महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) ने यह कहा कि भारत सहित पूरे विश्‍व में समस्‍त टमाटर उत्‍पादक क्षेत्रों में
टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु सबसे अधिक खतरनाक रोग है और अर्का रक्षक एक सरकारी संस्‍था
का पहला त्रिगुणित रोग प्रतिरोधी एफ 1 संकर है। डॉ. ए.टी. सदाशिव, प्रधान वैज्ञानिक, जिन्‍होंने इस संकर को
विकसित किया था, ने महानिदेशक को यह बताया कि अर्का रक्षक में वांछित गुण एवं फल ठोसपन मादा जनक के
विकास के दौरान वियोजक समष्टि में वांछित पुनर्योगजों के चयन के द्वारा लाया गया था और बेहतर फल ठोसपन का
कारण कम संख्‍या में लोक्‍यूल (2-3) तथा पेरिकार्प (1 से. मी.) था। उन्‍होंने महानिदेशक को यह बताया कि अर्का
रक्षक के 35 कि.ग्रा. से अधिक एफ 1 बीजों को अभी तक देश के 22 राज्‍यों को वि‍तरित किया गया है। संस्‍थान एफ 1
बीजों की आपूर्ति के लिए अफ्रीका, पाकिस्‍तान और वियतनाम देशों से अनुरोध प्राप्‍त कर रहा है। उन्‍होंने यह
बताया कि किसानों की वहनीयता को ध्‍यान में रखते हुए, अर्का रक्षक के बीज के मूल्‍य को बाजार दर से आधे मूल्‍य
पर निर्धारित किया जाता है (निजी कंपनियां द्वारा निर्धारित रू. 600-700 रूपयों की तुलना में रू. 300 प्रति 10
ग्राम)। डॉ. एम प्रभाकर, प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख तथा डॉ. शंकर हेब्‍बार, प्रधान वैज्ञानिक, सब्‍जी फसल प्रभाग ने
यह कहा कि सटीक कृषि विधियों (ड्रिप + काली पॉलीथीन पलवार + उर्वरीकरण + पर्णीय पोषकतत्‍व सुविधाओं),
के साथ में आईआईएचआर द्वारा विकसित सब्जी स्‍पेशल का प्रयोग किए जाने से तथा सूक्ष्‍म पोषकतत्‍वों का पर्णीय
छिड़काव किए जाने के कारण फलों की संभावित उपज और समान आकार हासिल किया गया। महानिदेशक एवं उप
महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) ने उन वैज्ञानिकों की पूरी टीम को बधाई दी जो अर्का रक्षक के विकास में संलग्‍न थे,
और उन्‍होंने श्री चंद्रप्‍पा और उनके परिवार सदस्‍यों को उच्‍च उपज प्राप्‍त
करने हेतु टमाटर फसल को वैज्ञानिक तरीके से उगाने में श्री चंद्रप्‍पा की भी प्रशंसा की।
श्री चंद्रप्‍पा अब अर्का रक्षक की लगातार खेती कर रहे हैं और इस बीच वे दक्षिणी राज्‍यों के प्रमुख टमाटर क्षेत्रों में
अर्का रक्षक का अंगीकरण करने और प्रसार करने में एक आदर्श टमाटर किसान बन चुके हैं। वैज्ञानिकों पर विश्‍वास
कर सार्वजनिक संस्‍था के संकर को उगाने के दृढ़ प्रयासों से न केवल श्री च्रंदप्‍पा
को उच्‍च उपज प्राप्‍त हुई, बल्कि उन्‍होंने अनेक पुरस्‍कार और सम्‍मान प्राप्‍त किए जिनका ब्‍यौरा नीचे दिया जा
रहा है।
 आईआईएचआर, बेंगलुरू द्वारा संस्‍थान के दिनांक 5-9-2013 को स्‍थापना दिवस के अवसर पर अर्का
रक्षक के लगातार प्रदर्शन और खेती करने के लिए ‘उत्‍कृष्‍ट टमाटर उत्‍पादक’ पुरस्‍कार।  
 ‘दि हिंदू’ द्वारा दिनांक 11-09-2013 को लिया गया एक साक्षात्‍कार और ‘’प्रति पादप 19 कि. ग्रा. की
उपज वाली नई टमाटर किस्‍म’’ पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई।
 दिनांक 16-09-2013 को एक नई रिपोर्ट : ‘आईआईएचआर, बेंगलुरू में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक नया
संकर टमाटर किस्‍म’ जिसकी उपज बायोस्‍पेक्‍ट्रम में प्रति पादप 19 कि. ग्रा. पाई गई।
 दिनांक 18-09-2013 को बेंगलुरू मिरर में एक नई रिपोर्ट ‘किसानों को नई टमाटर किस्‍म का वरदान’’।
एनएआरएस प्रणाली के तहत सार्वजनिक अनुसंधान संस्‍था द्वारा भारत के पहले त्रिगुणित प्रतिरोधी टमाटर संकर को
विकसित करने में डॉ. ए. टी. सदाशिव आईआईएचआर, बेंगलुरू तथा उनकी टीम के उल्‍लेखनीय कार्य को भारत
तथा अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बड़ी मान्‍यता प्राप्‍त हुई तथा कुछ नई उपलब्धियां/मान्‍यताएं निम्‍नानुसार हैं :

 कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अर्का रक्षक - विमोचित टमाटर किस्‍म, जो टमाटर पत्ती मोड़क विषाणु
एवं अल्‍टरनेरिया (उपज 90 टन प्रति हैक्‍टे. से अधिक) रोग से प्रतिरोधी है, के लिए मान्‍यता दी गई, जिसे
बागवानी फसलों के तहत ‘’फार्म प्रौद्योगिकियों के विकास में भाकृअनुप प्रगति की राह पर’’ शीर्षक से
उद्धृत किया गया था - प्रेस सूचना ब्‍यूरो, भारत सरकार, कृषि मंत्रालय, दिनांक 31-12-2013.
 त्रिगुणित प्रतिरोधी संकर अर्का रक्षक को विकसित करने पर एवीआरडीसी, ताइवान द्वारा मान्‍यता।
 निजी बीज कंपनियों के विभिन्‍न अर्का रक्षक प्रदर्शन प्‍लॉटों पर सचिव, डेयर और महानिदेशक,
भाकृअनुप; उप महानिदेशक (बागवनी विज्ञान) तथा अन्‍य प्रमुख अधिकारियों का दौरा।
 किसानों द्वारा अर्का रक्षक के सफलतापूर्वक अंगीकरण के बारे में दिनांक 20-09-2017 को एनडीटीवी
द्वारा डॉ. ए.टी. सदाशिव के साक्षात्‍कार का प्रसारण http://khabar.ndtv.com/video/
show/news/291360 (link is external)).
 अर्का रक्षक की सफलता, जैसा कि उपरोक्‍त में वर्णन किया गया है, पर न्‍यूज रिपोर्ट का प्रकाशन।
 पाकिस्‍तान, मलेशिया और घाना के किसानों और अनुसंधानकर्ताओं से अर्का रक्षक के बीजों की मान्‍यता
और मांग।   
बीजों की मांग की पूर्ति करने के लिए संस्‍थान अर्का रक्षक के एफ 1 बीजों का बड़ी मात्रा में उत्‍पादन कर रहा है। अभी
तक कुल 30 कि. ग्रा. एफ 1 बीज उत्‍पादित किए गए हैं, जिसे भारत में 400 हैक्‍टे. क्षेत्रफल को शामिल करते हुए
किसानों को वितरित किया गया है। इसके अलावा, अर्का रक्षक के पौधों को उगाने के लिए बीज की मांग की पूर्ति
करने हेतु अनेक उद्यमी सीधे संस्‍थान में आ रहे हैं।