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टमाटर फसल में उन्‍नत उत्‍पादन प्रौद्योगिकी

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किसानों के लिए टमाटर एक महत्‍वपूर्ण वाणिज्यिक सब्‍जी फसल है। जलवायु-परिवर्तन के कारण नाशीजीवों और रोगों के प्रकोप, श्रमिकों का अभाव, कुओं का सूख जाना आदि के कारण टमाटर के किसानों को विभिन्‍न समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है। गत कुछ वर्षों में पछेती अंगमारी रोग खरीफ और पछेती खरीफ मौसम में टमाटर किसानों के लिए एक खतरनाक रोग उभरकर आया है। टमाटर की खेती की निविष्टियों की बढ़ती लागत और श्रमिकों की उपलब्‍धता एक बहुत बड़ी समस्‍या है। टमाटर खेती की लागत में बढ़ती वृद्धि तथा अन्‍य जैविक एवं अजैविक समस्‍याओं के कारण किसानों को टमाटर की खेती करने में बढ़ती समस्‍याओं का सामना करना पड़ रहा है।

अत:, इन समस्‍याओं से निपटने के लिए, आईआईएचआर बेंगलुरू ने टमाटर फसल में प्‍लास्टिक पलवार, टपक सिंचाई और उर्वरीकरण पर प्रौद्योगिकी संबंधी प्रदर्शन आयोजित किए। इस प्रौद्योगिकी के अंतर्गत निम्‍नलिखित कार्य किए जाते हैं: 

  1. कम मात्रा में सिंचाई जल के साथ पोषकतत्‍व का अनेक भागों में प्रयोग करना, जिससे प्रयोग किए गए उर्वरकों की घटती मात्रा के जरिए उर्वरीकरण की दक्षता बढ़ती है, क्‍योंकि उर्वरकों का प्रयोग सीधे जड़ क्षेत्र में किया जाता है।
  2. बार-बार उर्वरक प्रयोग किए जाने से उर्वरीकरण के प्रभाव में सुधार आता है जिससे विभिन्‍न फसल विकास अवस्‍थाओं पर पादप आवश्‍यकता की पूर्ति करना संभव हो जाता है।
  3. इससे जड़ क्षेत्र से आगे लीचिंग या अनुप्रवाह के जरिये न्‍यूनतम हानी के साथ उर्वरकों का बेहतर वितरण होता है।

इस प्रौद्योगिकी को बेंगलुरू शहरी जिले के बेंगलुरू उत्‍तर तहसील में दासनपुरा होबली के अग्रहारा गांव में सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया। मल्चिंग अपनाए जाने से नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण तथा मृदा संरचना को कायम रखने में सहायता मिलती है। पलवार से उपयोग किए गए उर्वरक की दक्षता बढ़ती है तथा पारदर्शी पलवारों का उपयोग किए जाने से नाशीकीटों और विषाणु रोगों का प्रकोप कम होता है। प्‍लास्टिक पलवार और टपक सिंचाई के परिणामों को देखकर किसान काफी खुश हुए। गांव के किसानों की यह राय है कि इन दो प्रौद्योगिकियों को अपनाकर वे जल एवं उर्वरकों की बर्बादी को कम कर सकते हैं। नई प्रौद्योगिकियों ने 50-70 प्रतिशत तक जल-आवश्‍यकता को कम किया है और उर्वरकों की लागत को भी कम किया है। नाशीकीटों और रोगों का प्रकोप भी कम हुआ है। प्रति एकड़ रोपण के लिए अपेक्षित पौधों की संख्‍या भी 25 प्रतिशत तक कम हो गई है। प्राप्‍त किए गए फलों की गुणवत्‍ता और रंग बेहतरीन पाए गए, जिसके कारण किसानों को बाजार में अच्‍छा मूल्‍य प्राप्‍त हुआ। ‘’राष्‍ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि कार्यकलाप’’ परियोजना के तहत दिनांक 22 अक्‍तूबर, 2011 को ‘’टमाटर फसल में उन्‍नत उत्‍पादन प्रौद्योगिकी’’ पर एक फील्‍ड दिवस का आयोजन किया गया जिसमें आस-पास के गांव के 70 किसानों ने भाग लिया। आईआईएचआर के निदेशक तथा कीट विज्ञान एवं सूत्रकृमि विज्ञान; सब्‍जी फसल; पादप विकृति विज्ञान प्रभागों के वैज्ञानिकों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया।