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केला, अंगूर और अनार में परंपरागत सिंचाई की तुलना में टपक सिंचाई से 25-35% पानी की बचत करने की तकनीकी विकसित की गई।

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80% वाष्‍प की बहाली के लिए ड्रिप सिंचाई करने की सिफारिश की गई। प्राप्‍त जल की मात्रा को पादप के किसी भी भाग में 30 से. मी. के अंतराल पर दो उत्‍सर्जकों से जोड़ा जाना चाहिए। ड्रिप सिंचाई के माध्‍यम से घूलनशील उर्वरकों का प्रयोग किए जाने से उर्वरकों की काफी ज्‍यादा बचत की गई (लगभग 20-25% की बचत)। इसके अलावा, नाइट्रेट-नाट्रोजन ली‍चिंग के माध्‍यम से भू-जल के संदूषण को काफी हद तक रोका गया। फर्टिगेशन से फसल-विकास के विभिन्‍न चरणों पर समनुरूपी पोषक तत्‍वों का उपयोग करने की संभावना का भी पता चला।

40% वाष्‍प बहाली से आम के बगीचों में ड्रिप सिंचाई (जब वाष्‍पन 8 मि. मी. है तब 20-25% ली. प्रति पादप प्रति दिन और जब आवरित छत्र क्षेत्र लगभग 6.25 मीटर है,  से फल स्‍थापन और उपज में वृद्धि हुई (12% तक)। उर्वरक की 75% संस्‍तुत खुराक के माध्‍यम से पोटाश के यूरिया और म्यूरेट के रूप में घूलनशील उर्वरकों (नाइट्रोजन और पोटेशियम) की आपूर्ति करने से 100% संस्‍तुत उर्वरक की तुलना में, अधिक उपज प्राप्‍त की गई - उर्वरक उपयोग में लगभग 25% की बचत।